प्रियंका जैन "चंचल" |
चुपचाप बैठे हुए कैसे खामोश हो,
सच्ची-सच्ची कह दूँ अहसान फ़रामोश हो |
हरे भरे पेड़ों की क्यों करते कटाई तुम ,
ऐसे ही तो प्यारे हरियाली हो गई है गुम ,
कैसे भूल गए तुम, इनके महान गुण ,
इनसे वसंत और इनसे है फाल्गुन |
रही बेहोशी 'चंचल 'अब तो कोई होश हो |
जीवन दिया है तुम्हें ,बदले में चाह नहीं ,
कष्ट दिया है इन्हें, मुख से भी आह नहीं ,
इनके बिना जिन्दगी, तेरी कभी पार नहीं ,
इनकी रक्षा करने को, फिर क्यूँ तैयार नहीं |
मूरख! क्यों तुम्हें इनसे कोई सरोकार नहीं ,
निष्क्रिय रहे बहुत, अब तो कोई रोष हो |
सदा तेरा किया भला, धूप हो या छाँव हो ,
इनके प्रति भले ही तेरा कैसा भाव हो ,
इन वृक्षों को उगाने में तुम्हारा भी तो चाव हो ,
इनके लिए थोडा भी तुम्हारा लगाव हो |
काटते इन्हें हैं जैसे, इनका कोई दोष हो |
सच्ची सच्ची कह दूं अहसान फ़रामोश हो ||
2 comments:
बहुत खूब प्रियंका मैडम। अति सुंदर।
धन्यवाद जी |
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