Pages

Pages

Thursday, September 20, 2018

अहसान फरामोश

प्रियंका जैन "चंचल" 

        

  चुपचाप बैठे हुए कैसे खामोश हो,
  सच्ची-सच्ची कह दूँ  अहसान फ़रामोश हो |
  हरे भरे पेड़ों की क्यों करते कटाई तुम ,
  ऐसे ही तो प्यारे हरियाली हो गई है गुम ,
  कैसे भूल गए तुम, इनके महान गुण ,
  इनसे वसंत और इनसे है फाल्गुन |
  रही बेहोशी 'चंचल 'अब तो कोई होश हो |
जीवन दिया है तुम्हें ,बदले में चाह नहीं ,
कष्ट दिया है इन्हें, मुख से भी आह नहीं ,
इनके बिना जिन्दगी, तेरी कभी पार नहीं ,
इनकी रक्षा करने को, फिर क्यूँ तैयार नहीं |
मूरख! क्यों तुम्हें इनसे कोई सरोकार नहीं ,
निष्क्रिय रहे बहुत, अब तो कोई रोष हो |
सदा तेरा किया भला, धूप हो या छाँव हो ,
इनके प्रति भले ही तेरा कैसा भाव हो ,
इन वृक्षों को उगाने में तुम्हारा भी तो चाव हो ,
इनके लिए थोडा भी तुम्हारा लगाव हो |
काटते इन्हें हैं जैसे, इनका कोई दोष हो |
सच्ची सच्ची कह दूं अहसान फ़रामोश हो ||



2 comments:

  1. बहुत खूब प्रियंका मैडम। अति सुंदर।

    ReplyDelete