एक बात मेरे दिल में है ,मैं सोचती हूँ बोल दूँ |
जब बात भाषा की चली तो सारी पोलें खोल दूँ ||
कहते हो माता का है नाता ,तो इसे सम्मान दो |
इसने दिया है मान तुमको ,तुम भी इस पर ध्यान दो |
व्यवहार में लाना है तुमको ,मैं तो इसी पर ज़ोर दूँ ||
बात सिद्धान्तों की करते ,व्यवहार में लाते नहीं |
अच्छे बालक मात को यूँ छोड़कर जाते नहीं |
कर दो प्रतिष्ठित हिंदी को, कर दोनों अपने जोड़ दूँ ||
आज के साहित्य के तो और कुछ ही ठाठ है |
धैर्य ,साहस ,धर्म के हमको न मिलते पाठ है |
हिन्दी है जकड़ी बन्धनों में इन बन्धनों को तोड़ दूं ||
सोच 'चंचल' इस दिशा को कैसे उचित मोड़ दूँ ,
बस हो गया है अब बहुत ,अब बात इसकी छोड़ दूँ ||
जब बात भाषा की चली तो सारी पोलें खोल दूँ ||
कहते हो माता का है नाता ,तो इसे सम्मान दो |
इसने दिया है मान तुमको ,तुम भी इस पर ध्यान दो |
व्यवहार में लाना है तुमको ,मैं तो इसी पर ज़ोर दूँ ||
बात सिद्धान्तों की करते ,व्यवहार में लाते नहीं |
अच्छे बालक मात को यूँ छोड़कर जाते नहीं |
कर दो प्रतिष्ठित हिंदी को, कर दोनों अपने जोड़ दूँ ||
आज के साहित्य के तो और कुछ ही ठाठ है |
धैर्य ,साहस ,धर्म के हमको न मिलते पाठ है |
हिन्दी है जकड़ी बन्धनों में इन बन्धनों को तोड़ दूं ||
निकृष्ट रचनाएं भी देखो सम्मान कितना पा रही |
आया है कलियुग आज कैसा लेखनी शरमा रही |सोच 'चंचल' इस दिशा को कैसे उचित मोड़ दूँ ,
बस हो गया है अब बहुत ,अब बात इसकी छोड़ दूँ ||
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