औरत की ज़िन्दगी ,उलझन बन गई |
झाँक न पाए कोई, चिलमन बन गई ||
उसके जन्म को अभिशप्त ,माना है उसके अपनों ने|
आई नहीं दुनिया में अभी वो , क़त्ल कर दिया अपनों ने |
अपनों के लिए ज़िन्दगी उसकी अड़चन बन गई ||...औरत की जिन्दगी ...
जीना चाहती है वो ,कोई सुन ले उसकी पुकार को |
जां नहीं ले सकता इंसा,यह हक परवदीगार को |
अपनों के लिए ही वह तो दुश्मन बन गई ||...औरत की जिन्दगी ...
जन्म यदि होता है ,तो फिर ऐसे पाला जाता है,
बात बात में उसको दबना ,सिखलाया जाता है ,
धन पराया मान कर उसे बोझ बताया जाता है
छोटी -सी प्यारी गुड़िया देखो दुल्हन बन गई ||...औरत की जिन्दगी ...
पग ही रखा था उसने ,ससुराल की देहरी पार |
छोटी सी गुडिया को पड़ गई क्रूर दहेज़ की मार |
फूलों सी जिन्दगी थी ,शूल बन गई ;
उसकी जिन्दगी कैरोसीन में जल गई ||...औरत की जिन्दगी ...
उड़ते हुए पंछी के ज्यों, पर क़तर दिए जाते है |
उस मासूम के पैरों में भी, बंधन डाले जाते है |
जिन्दगी उसकी अब, टूटा दर्पण बन गई ||...औरत की जिन्दगी ...
हिम्मत यदि वो करती है ;घर से बाहर निकलती है
दुनिया कब सहन यह करती है ;उसको घावों से छलती है
उसके प्रति यह दुनिया क्यों निर्मम बन गई ||औरत की जिन्दगी ...
इन जुल्मों को देखकर अश्रु प्रवाहित होते है
धिक्कार है उन लोगों को जो जागकर भी सोते है
विरुद्ध हो अन्यायों के "चंचल" अब तो तन गई ||औरत की जिन्दगी ...
झाँक न पाए कोई, चिलमन बन गई ||
उसके जन्म को अभिशप्त ,माना है उसके अपनों ने|
आई नहीं दुनिया में अभी वो , क़त्ल कर दिया अपनों ने |
अपनों के लिए ज़िन्दगी उसकी अड़चन बन गई ||...औरत की जिन्दगी ...
जीना चाहती है वो ,कोई सुन ले उसकी पुकार को |
जां नहीं ले सकता इंसा,यह हक परवदीगार को |
अपनों के लिए ही वह तो दुश्मन बन गई ||...औरत की जिन्दगी ...
जन्म यदि होता है ,तो फिर ऐसे पाला जाता है,
बात बात में उसको दबना ,सिखलाया जाता है ,
धन पराया मान कर उसे बोझ बताया जाता है
छोटी -सी प्यारी गुड़िया देखो दुल्हन बन गई ||...औरत की जिन्दगी ...
पग ही रखा था उसने ,ससुराल की देहरी पार |
छोटी सी गुडिया को पड़ गई क्रूर दहेज़ की मार |
फूलों सी जिन्दगी थी ,शूल बन गई ;
उसकी जिन्दगी कैरोसीन में जल गई ||...औरत की जिन्दगी ...
उड़ते हुए पंछी के ज्यों, पर क़तर दिए जाते है |
उस मासूम के पैरों में भी, बंधन डाले जाते है |
जिन्दगी उसकी अब, टूटा दर्पण बन गई ||...औरत की जिन्दगी ...
हिम्मत यदि वो करती है ;घर से बाहर निकलती है
दुनिया कब सहन यह करती है ;उसको घावों से छलती है
उसके प्रति यह दुनिया क्यों निर्मम बन गई ||औरत की जिन्दगी ...
इन जुल्मों को देखकर अश्रु प्रवाहित होते है
धिक्कार है उन लोगों को जो जागकर भी सोते है
विरुद्ध हो अन्यायों के "चंचल" अब तो तन गई ||औरत की जिन्दगी ...
प्रियंका जैन "चंचल " |
बहुत अच्छा लिखा है।परंतु अभी दुनिया बदल रही है,अब अपने आपको ही देख लीजिए।आपकी एक अलग शख्सियत है,जहा आप रहती,अपने समाज में ,कार्यक्षेत्र में आपने एक अलग छाप छोड़ रखी है।अब लड़कियां आसमान को छूने लगी है,राष्ट्र प्रमुख बन के देश चला रही है ,नीति निर्माता बन के दुनिया को विकास के पथ पर अग्रसर कर रही है।तो अभी नेगेटिव नही ,पॉजिटिव होना है। उदाहरण उन महियाओ के देखने है जो दुनिया बदल रहे है।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिख रहीं है आप, ये नारी की व्यथा को आपने शब्द दिए हैं। अच्छी रचना है, आगे और प्रयास जारी रखें शुभकामनाएं।
ReplyDeleteHi!
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