प्रियंका जैन" चंचल " |
तर्ज -आपके प्यार में (राज़)
आत्मा देह के स्वरूप में भेद है |
जानता तू नहीं बस यही खेद है |
विवेक से काम ले.. तू तो मानव है -
सोच, क्या हेय, ज्ञेय, उपादेय है ||आत्मा देह ...
क्यूँ सँवारे इस देह को, ओ बाबले ,
क्यूँ निखारे इस चाम को, ओ बाबले |
मिट्टी की ये, काया तेरी, मिट्टी हो जायेगी |
सुन्दर -सी ये, काया तेरी, खाक हो जायेगी |
सोच तू ,आया क्यूँ ,क्या तेरा ध्येय हैं ||आत्मा देह ...
यह आत्मा है अज़र अमर ,
फिर तू क्यों करता है किसकी फिकर |
भीगे नहीं सूखे नहीं जले ना आग से
कर्मों का लेप इस पर चढ़ा मोह राग से
संभल हो 'चंचल' यह बात ज्ञेय है ||आत्मा देह ...
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तर्ज -प्यार किया तो निभाना (मेज़र साब)
खोता है पल- पल क्यों तू, होके क्यूँ यूँ दीवाना|
लिया है जनम तो तुझको है इक दिन मर जाना |
शुभ ध्यान तू लगाना, शुभ ध्यान तू लगाना ||
तेरी जिन्दगी का मकसद ,हो मुक्ति वरण करना |
शुभ कार्य तुझको करना, पापों से तुझको डरना |
वृत्ति रही जो ये तेरी तो पाएगा तू सफलता ,
जीवन की डगर पे न होगी कोई विफलता ,
चाहता है गर तू 'चंचल' मोक्ष पद को पाना ||
शुभ ध्यान तू लगाना, शुभ ध्यान तू लगाना ||
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